
मामला हाथरस, बलरामपुर और अजमेर गैंगरेप से जुड़ा हुआ है, अगर सीधे नजरिये से देखा जाए तो तीनों एक ही प्रकृति के अपराध है लेकिन अगर आप तीनो मामलों पर गौर करें तो आपको राजनीतिक घरानों और मीडिया हाउसेज की रिपोर्टिंग में भारी अंतर समझ मे आएगा। क्या राज्य में दूसरी पार्टी की सरकार होने पर अपराध का रूप बदल जाता है? या फिर आरोपियों के सवर्ण होने से अपराध की गंभीरता बढ़ जाती है? या केवल दलित बेटी के साथ होने वाले बलात्कार ज्यादा भयावह होते है? अगर वही बेटी सवर्ण समाज से होती तो शायद रेप करने वाला आरोपी कुछ रहम बरत देता है, सवाल न सिर्फ गंभीर है बल्कि झझकोरने वाले है.........
हालाँकि असल मायने में अपराध केवल अपराध तक ही सीमित रहने चाहने चाहिए लेकिन असल मे ऐसा होता नहीं है, टीआरपी की भूख और जाति समुदाय से वोट की चाहत में नेताओं और मीडिया हाउसेज द्वारा लगातार अपराध में जातीय एंगल और समुदाय विशेष के एंगल को भुनाने की कोशिश की जाती है, उदाहरण के तौर पर 2018 में दो घटनाओं का संदर्भ लेना आवश्यक हो जाता है, पुणे की एक कंपनी में दो कर्मचारियों की हत्या दो अलग-अलग दिन एक ही हफ्ते में हो जाती है, दोनो कर्मचारियों की चाकुओं से गोदकर हत्या की जाती है, बस इस मामले में एक अन्तर होता है कि एक हत्या में मरने वाला दलित और दूसरे मामले में सवर्ण, दोनो मारने बालों में दलित को सवर्ण के द्वारा चाकुओं से गोदा जाता है वहीँ दूसरे मामले में दलित द्वारा हत्या को अंजाम दिया जाता है लेकिन दोनो मामलों में मीडिया की लाइनों पर गौर करने लायक होती है।
"दलित की नौकरी की वजह से झुंझलाकर सवर्ण ने की निर्मम हत्या"( मृतक दलित था)
"निजी कंपनी में कार्यरत कर्मचारी की हुई हत्या" (सवर्ण मामला)
अब आप दोनों मामलों की गंभीरता और उसके पीछे की कहानी को समझ सकते हैं। एक ओर जहां दलित युवक के मारे जाने पर स्वर्ण कातिल का समुदाय उल्लेखित किया गया लेकिन वहीँ सवर्ण व्यक्ति के मारे जाने की खबर में ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिला।
उसी द वायर के द्वारा बलरामपुर में शब्दों के साथ खेलने की हद पार कर दी गयी, मामले दोनो बिल्कुल एक जैसे ही थे बशर्ते इस बार बलात्कारियों का धर्म द वायर को नजर आ गया:
एक ओर जहां मीडिया हाउसेज में सामुदायिक खबरों को अलग तरीके से पेश किया जाता है वहीँ राजनीतिक दलों से जुड़े हुए लोग इन मामलों को गिद्ध की नजर से देखते हुए पाये जाते है फिर चाहे मामला उत्तर प्रदेश से जुड़ा हुआ हो या फिर राजस्थान के अजमेर से बीते दिनों कुछ मामले बेहद चर्चा में रहे लेकिन इन सभी मामलों में नेताओ के असल रूप नजर आ गये।
दरअसल इन सभी मामलों में पीड़ितों को दर्द और तकलीफ समान रूप से मिली उसके बाद भी नेताओं ने अपने नए रंग दिखाने से परहेज नहीं किया, कांग्रेस के नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी पीड़ित परिवार से मिलने के लिए हाथरस जाने के लिए तो उत्सुक दिखे क्योंकि उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार है लेकिन वहीँ अजमेर में बिल्कुल इसी तरह के मामले पर एक शब्द भी नहीं कहा। लोगों ने इस मामले को लेकर तमाम आरोप भी लगाए है, लेकिन कहते है ना कि चिकने घड़े पर कोई रंग नहीं चढ़ता।
लोगों ने राहुल गांधी से कड़े सवाल पूंछे है कि आखिर अजमेर की महिला के साथ हुए बालात्कार पर आपने चुप्पी क्यों साध रखी है? क्या उस पीड़िता को दुष्कर्म से कोई तकलीफ नहीं मिली?
हमारा यह मानना है कि चाहे मामला उत्तर प्रदेश के हाथरस से हो या बलरामपुर से अथवा राजस्थान के अजेमर से यहां सभी के साथ दरिंदगी हुई है और इन सभी के साथ न्याय होना चाहिए और जांच में दोषी पाए जाने पर हर आरोपी को सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए।
डिस्क्लेमर: हमारा उद्देश्य सभी सच खबरों को सामने लाना है, हम हर वक्त सभी पीड़िताओं के साथ बिना जातिगत विभेद के साथ खड़े है और किसी पीड़िता के साथ अन्याय जैसा कुछ भी नही होना चाहिए, इस लेख में लिखे गए सभी विचार लेखक के है और उदय बुलेटिन का इस लेख से सहमत होना आवश्यक नही है।
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