
मानव स्वभाव से आनंद प्रेमी रहा है उसने हमेशा वो विकल्प तलाशे हैं जिनमे उसे आनन्द मिलता है। लेकिन जब भी उसे त्वरित आनन्द की आवश्यकता हुई उसने दूसरे विकल्पों को भी चुना फिर चाहे वह शराब और अन्य नशीली वस्तुएं ही क्यों न हो। भारत मे लंबे अरसे से गांजा जैसे नशीले पदार्थ को लेकर बहस छिड़ी हुई है लेकिन अभी तक इसके कोई परिणाम नहीं आये है। कभी दबावों के चलते तो कभी नैतिकता के चलते इस हर्ब को दरकिनार किया जाता रहा है। लेकिन अब वक्त बदल रहा है दुनिया के कई देश इसके पक्ष में उतर कर इसे लीगल करार दे चुके है ।
अगर भारत के सधुक्कड़ी इतिहास को देखे तो इसके प्रमाण हज़ारों सालो पहले भी मिलते है अथर्व वेद समेत अन्य जगहों पर गांजे के पादप को पांच औषधीय गुणों वाले महान पादपों में शामिल किया गया है। इस प्रकृति प्रदत्त पौधे को आम बोलचाल की बोली में गांजा कभी मैरियुवाना जैसे नामों से पुकारा जाता रहा है लेकिन असल मे इस पादप का असली वैज्ञानिक नाम कैनबिस है। जिससे तीन उत्पाद पैदा होते है:
पत्तियों और तने से भांग
फूल और डंठल से गांजा
राल से चरस
तीनों के तीनों उत्पाद के प्रकार नशे के लिए नशेड़ियों के लिए उम्दा पसंद है और खासकर भारत मे सबसे ज्यादा उपयोग किया जाता है।
अगर पुराने इतिहास को देखे तो पहले गांजा, भांग ग्रामीण खेत्रों में रहने वालों के लिए सबसे सहज उपलब्ध वस्तु होती थी लेकिन चरस थोड़ा मजबूत वर्ग के लिए क्योंकि इसके उत्पादन में समय और मेहनत दोनों लग जाती है। धीरे-धीरे मिथक टूटे और ग्रामीण क्षेत्र से होते हुए गांजा पढ़े लिखे जमात के बीच पहुँच गया और आज ड्रग्स की दुनिया मे गांजा युवाओं की पहली पसंद बनता जा रहा है।
देखिए नफे नुकसान की बात करना बेमानी है क्योंकि नशा किसी भी हालत में स्वस्थ्य मस्तिष्क के लिए नुकसानदेह ही है लेकिन अगर बात नशे के इतर करे तो गांजे के परिणाम विदेशों में की गई रिसर्च में काफी रोमांचक आये हैं। रिसर्च के अनुसार गांजा लोगों मे दर्द सहने की क्षमता में काफी कारगर है साथ ही लोग प्रसन्न चित्त हो जाते है। मानसिक विकारों की कुछ स्थिति में गांजे का समुचित प्रबंधन इस तरह की समस्याओं में निजात दिलाता है। एक ग्राफ के बाद अमेरिका ने जिस क्षेत्र में गांजे पर प्रतिबंध हटाया वहां पर अन्य हानिकारक ड्रग्स के सेवन में अत्यंत कमी देखने मे पाई गई और शराब जैसी भयानक लत में काफी कमी देखी गयी। एक फैक्ट की बात यह भी है कि शराब पीकर वाहन दुर्घटना में हर साल लाखों लोग जान से हाँथ धो बैठते है लेकिन गांजा पीकर कभी भी ऐसा मामला रिपोर्ट नहीं किया गया।
रिया-सुशांत के मामले के बाद समाज मे एक बार फिर इस बहस ने अपना सर उठा लिया है कि गांजे को लीगल करार क्यों नही कर दिया जाता। इस पर लीगल करने की मांग रखने वाला पक्ष यह दलील देते हुए नजर आता है कि यह मात्र एक हर्ब है जिसका समुचित सेवन कोई खास नुकसान नहीं पहुंचाता बल्कि इसे लीगल करने के बाद सरकार के राजस्व में बढ़ोत्तरी नजर आएगी और अवैध तरीके से इसका विनिमय बंद होगा। वहीं दूसरा पक्ष इसे कम उम्र के लोगों के लिए बेहद हानिकारक बताता है। यह भी सही है कि गांजे के बालपन में सेवन मस्तिक का बौध्दिक विकास रोक देता है।
यहां हम एक बात स्पष्ट रूप से कहना चाहेंगे कि उदय बुलेटिन इस निष्कर्ष पर कभी नही पहुंचाता कि गांजे जैसे द्रव्य का कानूनी समाधान निकाला जाए अथवा नहीं इसके लिए सरकार है और स्वास्थ्य एजेंसियां है जो इस पर अपनी राय समय समय पर रखती रहती है।
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