
दुनिया मे लोगों का सबसे बड़ा चलन है कि वह लोगों की चर्चा में शामिल रहे, चूंकि चर्चा में रहने से प्रसिद्धी हासिल होती है लेकिन जो व्यक्ति भारत के उपराष्ट्रपति की गद्दी में दो कार्यकालों तक रहा हो उसे भला प्रसिद्धी की क्या आवश्यकता?
लेकिन कभी न कभी इस तरह की चाहत निकल कर सामने आ ही जाती है। मामला भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी से जुड़ा हुआ है जहां पर उनके किताब "हैप्पी एक्सीडेंट" (By Many a Happy Accident) के विमोचन के बाद शुरू हुआ। इस किताब के रिव्यू के बाद निजी हिंदी न्यूज़ चैनल के साथ हुए इंटरव्यू में हामिद अंसारी अपनी बातों पर कायम तो रहे लेकिन अपनी बातों का आधार और तथ्य नही बता सके।
दरअसल यह टीवी इंटरव्यू एक निजी हिंदी चैनल ज़ी न्यूज़ के द्वारा किया गया था। इस इंटरव्यू में चैनल के पत्रकार ने पूर्व उपराष्ट्रपति की लिखी किताब के लिखे अंशो को लेकर हामिद अंसारी से सवाल दागे। दरअसल उपराष्ट्रपति ने अपनी किताब में यह वर्णित किया है कि अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान जब एनडीए सरकार बनी तो संसद में बिलो को पास करने हेतु खुद प्रधानमंत्री यह सिफारिश लेकर उनके पास आये कि बिलो को शोर शराबे के दौरान ही पास किया जाए लेकिन मैंने उनकी इस मांग पर असहमति दर्ज कराई। हालाँकि जब पत्रकार ने इस पर सवाल पूँछे कि क्या आपकी मूल पार्टी कांग्रेस के द्वारा इस माहौल में कानून पारित नही हुए? उनकी लिस्ट हमारे पास है जिनमें कुछ बिल तो मात्र एक मिनिट की समय सीमा के अंदर ही पास किये गए। इस पर पूर्व उपराष्ट्रपति ने अनभिज्ञता जाहिर करते हुए बताया कि उन्हें स्मरण नही। हो भी सकता है कि ऐसा हुआ हो लेकिन मैं इस सरकार की बात कर रहा हूँ।
इंटरव्यू के दौरान जब एंकर ने उपराष्ट्रपति से उनके बयानों और किताब में लिखे गए उन अंशो पर बात करनी शुरू की जिसमें हामिद अंसारी ने भारत के मुसलमानों में असुरक्षा की भावना पर जिक्र किया तो पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी बेहद उखड़ते हुए नजर आए। कुल मिलाकर पूर्व उपराष्ट्रपति के द्वारा बाते तो कही गयी लेकिन वो सभी बातें लोगों के कहने सुनने पर आधारित नजर आती रही। इस मामले में उपराष्ट्रपति केवल और केवल बिंदुओं को गिनाते रहे लेकिन लिंचीग, हिन्दू आतंकवाद, मुसलमानों में असुरक्षा की भावना पर कोई ठोस वजह और तथ्य नही बता सके।
हालाँकि ऐसा नही है कि यह पहला मामला है कि किसी विवादास्पद किताब के लिखने के बाद ऐसे इंटरव्यू हुए हो लेकिन अपनी लिखी बातों को सदा सत्य मानकर उनके पीछे के तथ्यों को न उजागर कर पाना लेखन हीनता और वैचारिक शून्यता दर्शाता है। जाहिर सी बात है कि ऐसे मामलों में जब कि कोई किताब लिखी जाती है तो उसके तथ्य पहले से खोज कर रखने होते है लेकिन भारत के उपराष्ट्रपति जैसे पद पर लंबे वक्त से आसीन होने बाद भी अपरिपक्वता दिखाना शर्मिंदगी पैदा करता है।
माई डियर सर...
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