आज ही के दिन तालिबानी हमले की शिकार हुई थी मलाला यूसुफजई ।
9 सितम्बर, एक ऐसा यादगार दिन जिसमें कई कहानियाँ समाहित है। एक ऐसी ही कहानी है मलाला यूसुफजई की, ऐसे व्यक्तित्व को शायद शदियों में ईश्वर एक-बार निर्मित करता होगा। एक ऐसा व्यक्तित्व जो सबको चकित करके सबके दिलो में बस विश्वास और शिक्षा की प्रेरणा लेकर आये और इसी शख्सियत का नाम है "मलाला यूसुफजई"।
मलाला पाकिस्तान के मिंगोरा की रहने वाली है, जिसे 2009 से तालिबानियों ने अधिकृत कर रखा था। आये दिनों उनकी दहशत फैलती जा रही थी और हैवानियत थमने का नाम नहीं ले रही थी ऐसे में मलाला ने अपनी डायरी लिखने के शौक और अपनी कलम को "गुल मकई" नाम दिया जो की बीबीसी के द्वारा चलाई जा रही एक ब्लॉग्गिंग सिस्टम में एक ब्लॉग आईडी थी। इस संघर्ष से व्यक्त की हुई डायरी ने मलाला को एक वीरांगना के रूप में पेश किया। तालिबानियों ने स्वात में शिक्षा पर प्रतिबन्ध लगा दिया था लेकिन इसके वाबजूद मलाला ने शिक्षा को बढ़ावा दिया और शांति का सन्देश कायम रखा, जिससे खुश होकर पाकिस्तानी सरकार ने उन्हें "न्यू नेशनल पीस प्राइज" से सम्मानित किया। इन सभी घटनाओं और लड़कियों को शिक्षा प्रदान करने का आंदोलन चलाने के कारण तालिबान उन्हें अपना दुश्मन समझने लगे। 9 अक्टूबर, 2012 को मलाला जैसे ही स्कूल बस में बैठने को चढ़ी, उनसे एक व्यक्ति ने उनका नाम पूछा और नाम बताने के साथ ही तालिबानी गोलिओं ने उनका शरीर छलनी कर दिया लेकिन इंग्लैंड में बिर्मिंघम के क्वीन एलिज़ाबेथ हॉस्पिटल में सर्वोत्तम इलाज़ मिलने के कारण उनकी आत्मा शरीर से अलग नहीं हो पायी और उन्हें जीवन से हाथ नहीं धोना पड़ा। ऐसे में वह मीडिया की नज़र में आ गयी, पूरे विश्व में मलाला के स्वास्थ्य के लिए कामनाओं की ढेर लग गयी और उनका स्वास्थ्य सामान्य हो गया।
इस घटना पर मलाला ने कुछ शब्दों में अपने साहस का वर्णन किया था।
मैं उस लड़की के रूप में याद किया जाना नहीं चाहती जिसे गोली मार दी गयी थी। मैं उस लड़की के रूप में याद किया जाना चाहती हूँ जिसने खड़े हो कर सामना किया।
मलाला यूसुफजई
इस घटना के बाद 'संयुक्त राष्ट संघ' ने उनके जन्मदिवस 12 जुलाई को ‘मलाला दिवस’ घोषित कर दिया और मलाला मात्र 14 वर्ष में पाकिस्तान की पहली "युथ नेशनल पीस प्राइज प्राप्त" करने वाली महिला बनी।
मलाला को मिले पुरूस्कार: