
भारत सरकार विदेश से आये हुए यात्रियों और सैलानियों से कोरोना के पदचिन्हों को ख़ोजकर खुद को बेहद मजबूत स्थिति में रखने का प्रयास कर रही थी। एक समय लगा भी की हम काफी बेहतर स्थिति में पहुँच गए है कि अचानक ही दिल्ली की तबलीगी जमात ने सभी एजेंसियों का करा धरा मटियामेट कर दिया। गौरतलब हो देश मे जब कोरोना के एक्का दुक्का मामले निकल कर सामने आ रहे थे तब दिल्ली की निजामुद्दीन स्थिति मस्जिद के मरकज में देश दुनिया से आये हुए लोगों को साथ रखकर धार्मिक विचारधारा को पैना किया जा रहा था वहीँ पर विदेश से आये हुए मुस्लिम धर्मावलंबियों ने मरकज में आये हुए भारत के तमाम राज्यों के लोगों को कोरोना उपहार में दे दिया और बात यहीं तक सीमित नहीं रही सरकार इससे पहले भी ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने वाले कार्यक्रमों पर रोक लगा चुकी थी। धार्मिक अंधता का मजाक देखिए लोग हज़ारों की तादाद में वहां रहे और रहने के बाद देश के अलग-अलग हिस्सों में पहुँच गए जहां उन्होंने अपने खुद के परिवार के साथ अन्य को इस खतरनाक बीमारी से तआरुफ़ कराया।
नतीजा यह है कि अब देश मे कोरोना संक्रमितों की संख्या पांच हजार की बड़ी संख्या को आसानी से उस वक्त में पार कर चुकी है जब देश मे लॉक डाउन है। अगर ऐसी स्थिति में लॉक डाउन खुलता है तो हालात कैसे होंगे यह बताने की जरुरत नहीं हैं। यहां आपको बताते चले कि देश में मृतकों की संख्या भी एक सैकड़ा को पार कर चुकी है।
अगर असल मायने में देखा जाए तो मीडिया का समाज मे अहम रोल क्या होगा ? यही न कि किसी भी सूचना को आमजन तक बिना तोड़े मरोड़े पहुँचाया जाए लेकिन भारतीय समाज की विलक्षणता तो देखिए यहाँ आपने जामाती शब्द लिखा और लोगों को परेशानी होने लगी। अगर बात यहीं तक सीमित रहती तो भी ठीक था लेकिन जब टीवी न्यूज के एंकरों को जान से मारने और अंजाम भुगतने की बातें कही जाने लगी तो मामला आगे बढ़ गया खुद मीडिया से जुड़े हुए तमाम लोगों ने मीडियाकर्मियों के ऊपर होते निजी हमले को गलत करार दिया है।
यहाँ एक बात पर गौर करना जरूरी है कि संभलते हालातों में देश को इस महामारी की आग में झोंकने वाली जमात और उसके मौलाना को बचाने के लिए ऐसे-ऐसे तर्क दिए जा रहे है जिनका असलियत से कोई वास्ता ही नहीं आपको यह बताना भी आवश्यक है कि जब देश मे जमात के संक्रमितों का आंकड़ा पता नहीं चला था तब देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या करीब सात दिन में दोगुनी हो रही थी। लेकिन संक्रमित जमातियों के लगभग हर राज्य में पहुँच जाने की वजह से हालात यह है कि अब मात्र तीन दिन में ही यह संख्या दोगुनी हो जा रही है।
देश और राज्य की सरकारे दिल्ली की तबलीगी जमात से आये हुए लोगों और उनके संपर्क में आये हुए लोगों को चिन्हित करने का अभियान चला रही है और इसका एक सीधा साफ मतलब है लोगों की जान बचाना। लेकिन इसके बावजूद तमाम ऐसी घटनाएं सामने आ जाती है जिससे मन घिना जाता है कभी चौकी जलाने की कोशिश तो कभी पुलिसकर्मियों पर चाकू छुरी से हमला और कभी चिकित्साकर्मियों पर थूकने जैसी वाहियात हरकत।
गलत को गलत कहना कोई गुनाह नहीं भले ही कुछ भी हो। ये वक्त एकजुट रहकर इस महामारी से लड़ने का है लेकिन इस वक्त में भी कुछ लोगों को दीन धर्म की बाते समाज और देश के बाशिंदों की जान से ज्यादा अच्छी लगती है। मुझे लगता है कि अगर ये विरोध और मूर्खता बढ़ती रही तो बीमारी के बाद वाले हालात कभी हल्के नहीं होंगे।
डिस्क्लेमर : लेख में प्रयुक्त सभी विचार पूरी तरह से लेखक के है, यहां हम यह निश्चय कर देना चाहेंगे कि हमारा उद्देश्य किसी भी प्रकार से किसी धर्म को चोट पहुँचाना नही है लेकिन मामला देश की अवाम से जुड़ा हुआ है इसलिए इस मुद्दे पर चर्चा करना जायज हो जाता है।
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