मौत के सौदागर हैं कानपुर के रीजेंसी अस्पताल, मरे हुए मरीज़ को वेंटीलेटर पर रख ऐंठते हैं पैसे।
चिकित्सालय रोगियों के लिए वह जगह होती है जहां मरीज भरोसा लेकर लेकर जाता है वह कैसे भी हो ठीक होकर लौटेगा, लेकिन उत्तर प्रदेश मे हालात बेहद उलट है, पीड़ितों के अनुसार अस्पताल मौत के सौदागर बने बैठे है।
मामला उत्तर प्रदेश के कानपुर में फैली हॉस्पिटल चैन रीजेंसी हेल्थकेयर से जुड़ी हुई है, वैसे तो ये अस्पताल प्रदेश के नामी अस्पतालों में गिने जाते है जहाँ इलाज कराने का मतलब है मरते हुए मरीज को जिंदा कराने जैसा है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से इन अस्पतालों में मरीजो के साथ लूट-खसोट की घटनाओं में इजाफा हुआ है, मरीज़ों के मृत होने के बावजूद लंबे समय तक वेंटीलेटर पर रख कर पैसे ऐंठने की घटनाओं में बाढ़ सी आ गयी है और सरकार इन मामलों पर कोई नजर नही रख पा रही है ।
मामले के पीड़ित आशीष शुक्ला ने उदय बुलेटिन को बताया कि मैंने पाने भाई प्रेम चंद्र शुक्ला निवासी उन्नाव को दिनांक 27 अक्टूबर 2019 को बुखार आने पर शर्मा नर्सिंग होम स्वरूप नगर में भर्ती कराया जहां जांच किये जाने पर डेंगू की पुष्टि हुई, लगातार तीन दिनों तक इलाज होने के बावजूद भी कोई लाभ न हुआ, इस कारण से अस्पताल द्वारा प्रेमचंद शुक्ला को रीजेंसी हेल्थकेयर गोविंदनगर में रिफर किया गया।
आशीष शुक्ला ने मीडिया को बताते हुए कहा कि दिनांक 30 अक्टूबर 2019 को रात्रि 12:30 से रीजेंसी हॉस्पिटल में एडमिट करके इलाज शुरू किया गया जो कि अगले 10 दिन 10 अक्टूबर 2019 सुबह के 6 बजे तक चला।
आशीष शुक्ला ने मीडिया को बताया कि मेरे भाई को ठीक-ठाक हालात में रीजेंसी लाया गया था उसके बाद ही दिनांक 10 अक्टूबर की सुबह चार बजे हमें यह सूचना दी कि आपके भाई की अचानक मृत्यु हो चुकी है, जबकि लगातार 10 दिनों तक प्रेम सागर शुक्ला को वेंटिलेटर पर रखा गया था, उनकी देखरेख में डॉ राजीव कक्कड़, और डॉ रुपाली मेहरोत्रा लगे हुए थे।
मौत की खबर के तुरंत बाद ही 5 लाख 91 हजार का बिल बनाकर थमाया गया, इसके तुरंत बाद ही आशीष को एक दूसरा बिल 6 लाख 36 हजार का थमाकर बताया गया कि पैसे जमा कराएं तभी शव उपलब्ध कराया जाएगा।
आशीष ने जब इस मामले को अस्पताल प्रबंधन के सांमने उठाया कि एक व्यक्ति और एक ही अस्पताल में दो बिल कैसे दिए जा सकते है, एक परचून की दुकान पर भी एक समान के दो बिल नही निकलते इस पर प्रबंधन ने परिजनों की कोई बात न सुनते हुए 6 लाख 36 हजार रुपये चुकाने को कहा, इसके बाद पीड़ित पक्ष को पूरे पैसे चुकाने पड़े।
दरअसल अस्पताल में हुई म्रत्यु के समय अस्पताल रोगी के मरने के कारण को दर्शाने हेतु एक प्रमाण पत्र जारी करता है जिसे मृत्यु प्रमाण पत्र कहते है, इसमें डॉ रोगी के मरने के समय, मृत्यु का कारण दर्शाकर यह पुष्टि करता है कि अमुक व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है, लेकिन एक ही अस्पताल में एक ही व्यक्ति के दो म्रत्यु प्रमाणपत्र जारी करने से शंका की सुई उनकी तरफ कर दी है, पीडित आशीष शुक्ला के यह बताया कि अस्पताल के कर्मचारी और डॉक्टर रोगी को पैसे के आधार पर तोलकर बिल जेनरेट करते है, अगर परिजन बेहद तकलीफ में है या निचले या गरीब तबके से है तब उनपर दबाव डालकर पैसा वसूला जाएगा, जबकि मरीज के इलाज को भगवान भरोसे छोड़कर बैठा जाता है, आशीष ने आगे कहा कि एक व्यक्ति की मौत के बाद अलग-अलग तरह के मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किए जो इनके कामकाज पर उंगली उठाते है।
कहने को तो ये अस्पताल चेन उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल है लेकिन यह गोरखधंधा लंबे समय से चालू है, यहाँ आईसीयू में भर्ती मरीज की हालत से तभी रूबरू कराया जाता है जब पेशेंट मर चुका होता है, किसी भी हालत में मरीज की हालत खराब होने, या स्थिति बिगड़ने पर सूचित नही कराया जाता, और इससे पहले मिलने की इजाजत मांगने पर अस्पताल से निकालने, मरीज को बाहर करने की धमकी दी जाती है।
अब यहाँ एक सच साफ है कि देश और प्रदेश के जिलों में स्थापित सरकारी अस्पतालों की हालत बेहद खस्ता है जहाँ मरीज को भर्ती करना अनचाही मौत देने जैसा है, और बड़े सरकारी चिकित्सा संस्थान जैसे पीजीआई या एम्स जैसी जगहों पर भर्ती होना लगभग नामुमकिन सा होता है, क्योंकि उसके लिए आपकी राजनैतिक पकड़ मजबूत होनी चाहिए तो आखिर में थक हारकर व्यक्ति किसी तरह मरीज की जान बचाने की जुगत में प्राइवेट संस्थानों की तरफ रुख करता है जिसका नतीजा आपके सामने है।
कहने को तो मेडिकल एसोसिएशन जैसे संगठनों के द्वारा सरकार इन संस्थाओं का नियमन करती है लेकिन असल मे सरकार इन संस्थानों पर हाँथ भी डालने से डरती है, ये घटनाएं बेहद आम है जहाँ आम आदमी कंगाल होकर मरता है और सरकार विकास का झुनझुना पकड़ा कर अपना काम निकालते नजर आती है।