
दरअसल देश के करीब एक सैकड़ा से ज्यादा पूर्व नौकरशाहों ने लगभग सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर एक नया सेटअप तैयार किया है जिसकी वजह से समाज मे एक नई बहस छिड़ चुकी है, जिसके तहत सरकारों पर यह आरोप लगाए जा रहे है कि मुस्लिमों को उनका हक इस कोरोना वायरस की महामारी के बीच नहीं मिल पा रहा है। पूर्व नौकरशाहों के साथ-साथ द वायर ने इस खबर को लोगों तक पहुचाने के लिए जिन की वर्ड्स (Keywords) का इस्तेमाल किया है वह कहीं न कहीं से समाज मे जहर घोलने का काम कर सकता है।
चूंकि अब पूर्व नौकरशाह है तो सत्ता की बारीकियों से परिचित हैं और उन्हें पता है कि सरकार कब किस समय सबसे ज्यादा कमजोर और उलझने वाली स्थिति में होती हैं। मौके और माहौल पर नजर रखकर इस काम को अंजाम दिया गया है, चूंकि पहले से ही देश और विदेश में समाज के कुछ वर्गों द्वारा यह हवा फैलाई गई है कि भारत मे समुदाय विशेष का जीवन मुश्किल में है जबकि यह कोई बताने को तैयार नही है कि असल मे समाज के इसी समुदाय ने कोरोना जैसी महामारी की स्थिति को विषम्य बना दिया है। इसीलिए कुछ चुनिदा मीडिया हाउस जो पहले से ही सरकार की किसी भी अच्छी और बुरी नीतियों से इत्तेफाक नहीं रखते उन्होंने कुछ पूर्व बड़े अधिकारियों जिंनमे भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) के पूर्व प्रमुख भी शामिल है उनके कंधे पर बंदूक रख कर एजेंडा चलाया जा रहा है।
दरअसल द वायर का सरकार के हर मुद्दे पर अपना विरोध जताना बेहद जायज है क्योंकि पहले से ही पूर्वाग्रह से ग्रसित यह न्यूज़ पोर्टल सरकार को अपनी हनक दिखाने में लगा रहा है लेकिन बदकिस्मती यह है मौजूदा सरकार में यह पैंतरा कामयाब होता नहीं दिखता। यही नही निजी नजरिये से इस समाचार प्रदाता को एक पत्रकार और सेवा प्रदाता सही और दूसरा गलत लगने लगता है, यही कारण है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने उक्त पोर्टल के एक संपादक के ऊपर मुकदमा भी पंजीकृत कराया है।
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