लेकिन कहानी अभी खत्म नही हुई मित्रों, असल कहानी तो सरकार के बनने के बाद शुरू होनी है, देखते है रोटियों की लड़ाई में बाजी कौन मारता है।
महाराष्ट्र के पूर्व सीएम देवेन्द्र फडणवीस ने जैसे ही रात के स्याह अंधेरे में शपथ ली, उन्होंने ट्विटर को साक्षी मानकर एक पोस्ट किया।
इस अकेले वाक्य ने दुनिया को बता दिया कि महाराष्ट्र को दोबारा भाजपा का मुख्यमंत्री मिल गया, हालांकि जैसे ही ट्विटर वाली चिड़िया ने सुबह-सुबह चहचहाहट सुनाई तो शिवसेना और एनसीपी के शरद पवार ने अपने-अपने खेमों का जायजा लिया तब जाकर मालूम पड़ा कि अपना ही भतीजा दगा दे गया।
हालांकि ये पहली बार नहीं है, रामायण काल मे विभीषण, महाभारत काल मे युयुत्सु और कलियुग में जयचंद, अखिलेश और अजीत जैसे लोग होते रहे है जिन्होंने घर मे नया दरवाजा खोदकर अपना मुकाम हासिल करने की कोशिश की है, हालांकि सबके अपने-अपने संदर्भ और लक्ष्य थे, अपने प्रयासों में कुछ लोग सफल भी हुए और कुछ लोगों पर तोहमतों का पिटारा लाद दिया गया।
कुलमिलाकर अब लब्बोलुआब यह है कि 26 नवंबर की तारीख मतलब सत्ता हासिल करने के तीन दिन बाद ही सत्ता की कुर्सियां कांटो वाली हो गयी, सबसे पहले अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री के पद से स्तीफा दिया और उसके बाद शाम होते-होते देवेंद्र भी सटॉक से कुर्सी से उतरते हुए नजर आए।
रात के अंधेरे में सत्ता भले मिली हो लेकिन सत्ता कथा का समापन दिन के उजाले में ही हुआ वहीँ शिवसेना अब उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज कराना चाहती है जिसमे अंदरूनी तौर पर संगठन में शामिल दलों को सहमति निश्चय रूप से होनी ही चाहिए, कुल मिलाकर अब यह कहा जा सकता है कि अबकी बार कोई झोल नही होगा और सरकार ( जैसा कि पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि ये तीन पहियों की गाड़ी है) बन जाएगी।
पूर्व आम आदमी पार्टी के नेता और वर्तमान में कवि और बौना शब्द के भयानक प्रयोगकर्ता कुमार विश्वास भी मौके पर मजा लूटते नजर आए।
दरअसल होटल हयात में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने अपना बल प्रदर्शन किया था विधायकों की संख्या को लेकर, तो अगर गणना की जाए तो कुल मिलाकर तीनो पार्टियों के 162 विधायक मीटिंग में शामिल थे, तो जाहिर है सत्ता में तीनों पार्टियों का बराबर का दखल और हिस्सेदारी रहेगी, असल पेंच तो यहीं फसता है, क्योंकि तीनो पार्टियां भरोसा रखने के लिए बदनाम है।
एंकर और प्रशिद्ध व्यंग्यकार अनुराग मुस्कान ने तीनों पार्टियों की कम शब्दों में व्यापक व्याख्या कर दी है, आप खुद पढ़ ले:
तो असल पेंच सरकार बनने के बाद ही फसेगा, सरकार में किसको कितनी हिस्सेदारी मिलेगी, जहाँ तक महाराष्ट्र की राजनीति की वर्तमान आबोहवा है भाजपा सत्तासीन लोगों को अपने दमदार संख्याबल से विश्वामित्र और त्रिशंकु वाली स्थिति में तो लाएगी ही और मौका पड़ने पर कोई भी कैच छोड़ने के मूड में नहीं होगी, हालांकि अब जबकि भाजपा पूरी तरह महाराष्ट्र की सत्ता से बाहर ही है फिर भी वह सरकार को नाकों चने तो चबवा ही सकती है।
नोट : शब्दों का चयन और उपमाएं वार्ता में अलंकारों की तरह प्रयुक्त हुई हैं, हमारा कोई भी इरादा किसी को तकलीफ पहुँचाने या मानहानि करने का नहीं है, हालांकि राजनीति में मानहानि शब्द का प्रयोग भी शब्द की मर्यादा को नष्ट करने के जैसा है।