
पुलिस का नाम लेते ही आपके जेहन में डंडा कूटता हुआ वर्दीधारी नजर आता है, जो आपको अपनी वर्दी की धौंस जामाता हुआ भी नजर आ जायेगा लेकिन जनाब हर इंसान एक जैसा नहीं होता, हालांकि ये भी सच है कि काबुल में भी गधे पाए जाते है।
आपको प्रधानमंत्री के भाषण के बारे में बताने से पहले दिल्ली की मंडी के पास फैली आग के वाकये को ताजा कर देते है, मंडी का इलाका जहाँ नियमों को ताक पर रखकर एक फैक्ट्री चल रही थी और कई लोग वहां लगी आग में जलकर खाक हो गए। इसी दौरान दिल्ली पुलिस और फायर ब्रिगेड के पुलिस जाबांजो ने अपने अदम्य साहस का परिचय दिया, एक फायर पुलिस कर्मी ने तो अपनी जान दांव पर लगाकर कई लोगों की जान बचाई।
एक पुलिस वाला जो प्रदर्शनकारियों के पत्थरों से फूटा हुआ सिर लिए एक रूमाल से सिर को बांधे दौड़ा चला जा रहा है ताकि दंगाई किसी और को नुकसान न पहुंचा पाए। हालांकि वह यह जानता है कि कोई दूसरा पत्थर उसे मौत के मुंह में धकेल सकता है फिर भी वह बदस्तूर कोशिस करता रहता है।
मोदी ने दिल्ली के रामलीला मैदान में पुलिसकर्मियों की सेवा के बदले धन्यवाद ज्ञापित किया उन्होंने बताया कि पुलिस आपकी सेवा के लिए है। फिर चाहे वह अंधेरी रात हो या बरसता पानी, पुलिस चाहे बाढ़ हो या कोई आपदा, जनता की पहली मदद पुलिस ही होती है।
इस भाषण ने देश भर की पुलिस जो जनता की मजम्मतों का सिलसिला झेल रही थी उसने सुकून की राहत महसूस की है। यहाँ तक कि भारी संख्या में पुलिसकर्मियों ने अपनी सोशल मीडिया डीपी बदल कर मोदी के दिये गए भाषण का अंश लगाया है। कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी इसे मनोबल बढ़ाने के तौर पर मान रहे है।
भई दिल्ली के जामिया से पुलिस विरोधी अभियान शुरू हुआ और कुछ सूचना सेवा प्रदाताओं और बुद्धिजीवियों ने पुलिस को मुख्य विलेन के तौर पर स्थापित भी कर दिया। कुलमिलाकर सरकार बनाम जनता की यह जंग पुलिस बनाम धर्म हो गयी। देखते ही देखते पुलिस को भी एन्टी मुस्लिम मान लिया गया। अगर सीधे तरीके से देखे की जब दिल्ली के मंडी अग्निकांड में पुलिस पहुंची तो आग में झुलस रहे लोगों का पुलिस ने धर्म पूंछने के बाद मदद की थी ?
नहीं पुलिस का काम उन्हें बचाना था जो उन्होंने बखूबी किया भी, यही हाल सीएए के विरोध के दौरान था। पुलिस किसी तरह प्रदर्शनकारियों से आम जनता और सरकारी व निजी संपत्ति को बचाने के मूड में थी, प्रदर्शनकारियों के पत्थर भी खाए और गालियां भी। उत्तर प्रदेश के कानपुर में तो पुलिस ने प्रदर्शनकारियों की गोलियां भी खाई, कई पुलिसकर्मी आईसीयू में मौत से जंग लड़ रहे है।
तो कुलमिलाकर लब्बोलुआब ये है कि पुलिसकर्मी भी हमारे और आप के बीच के सदस्य है किसी दूसरे गोले से थोड़ी आये है। अगर कोई ऐसा काम करेंगे तो जो नियम और कानून विरुद्ध है तो यकीनन पुलिस सख्ती बरतेगी और जरूरत पड़ने पर लाठियां भी भाँजेगी। तो खुद को गलत करने से रोकिए फिर अगर पुलिस कुछ भी गलत करती है तो उस की मजम्मत करिये, सारा सिस्टम है जहाँ आप पुलिस को गलत पाने पर खड़ा कर सकते है, लेकिन पत्थर बरसाकर और बसें जलाकर लाठियां पड़ने पर बदनाम मत कीजिये।
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