
किसी भी देश की सेना की ताकत उसका साजो समान होता है, लेकिन सेना के नियम और दस्तूर सिर्फ उसकी कामयाबी से नहीं बल्कि समय के साथ बदले जाते है। कारगिल में पाकिस्तानियों के सपनो को अपनी बमबारी से चकनाचूर करने वाला वायुसेना का उन्नत विमान आज अपनी आखिरी उड़ान भरेगा।
क्षमता में बेहद आक्रामक, दुश्मनों को पल भर में नष्ट करने का माद्दा रखने वाला यह मिग 1985 से भारतीय वायुसेना का हिस्सा बना हालाँकि यह अपग्रेडेड विमानों का दस्ता 2006 में भारतीय वायुसेना में शामिल हुए था और तब से देश की सुरक्षा में अपनी सेवाएं देता चला आ रहा था।
अगर 1971 के बाद भारतीय सेना कभी सबसे बड़े एक्शन में आई थी तो वह वक्त था कारगिल जब दुश्मन ऊंची पहाड़ी चोटियों पर अपना कब्जा दुरुस्त किये भारत के रणबांकुरों को मौत की नींद सुला रहा था तब केवल दो चीजें ऐसी थी जिनपर भरोसा किया गया, भारतीय आर्टलरी की भीमकाय तोप बोफोर्स और वायुसेना के मिग 27, दोनो ने पाकिस्तानियों के पैर उखाड़ दिए, खासकर मिग 27 ने तो पाकिस्तान के बंकरों को हवा में इस कदर उछाला की भारतीय सेना के लिए उनको जन्नत पहुँचाने का रास्ता साफ हो गया।
चाहे वह जंग का मैदान हो या फिर कोई रिहर्सल, वायुसेना के अधिकारियों की माने तो मिग 27 एक तेज रफ्तार बाज की तरह अपने लक्ष्य पर झपट्टा मार कर खत्म करके गायब हो जाने की क्षमता रखता था, यही कारण था की कारगिल युद्ध के बाद इसे बहादुर नाम सुपुर्द किया गया।
वक्त के साथ सब कुछ बदलता है। युद्ध की नीतियां और जरूरतें भी वक्त के हिसाब से बदल जाती है यही कारण है वायुसेना जोधपुर एयरबेस में एयर चीफ मार्शल की मौजूदगी में अपने दस्ते (स्क्वाड्रन) संख्या 29 के आखिरी सात मिग 27 के साथ उड़ान भर कर सेना को अलविदा कहेगा।
पुराने मिग-27 विमानो को उड़ाया नहीं जा सकता। इन्हें महत्वपूर्ण रक्षा संस्थानों या सार्वजनिक स्थलों पर गौरव के रूप में प्रदर्शित किए जाने की संभावना है।
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