समाजवादी पार्टी (सपा) की पूर्व नेता जया प्रदा मंगलवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गईं। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की।
लोकसभा चुनाव से पहले नेताओं की आवाजाही लगी है। दलबदलू नेता टिकट पाने के लिए एक पार्टी से दूसरी पार्टी के चक्कर काटते फिर रहे हैं और जहां टिकट मिल जाए वहीं के हो जाते हैं। फिर पांच साल बाद ,हम तुम्हारे हैं कौन ? राजनीति में यह आम बात है, लेकिन अब नेता के साथ साथ अभिनेता भी इस लाइन में बढ़ -चढ़ कर हिस्सा लेने लगे हैं। आखिर उन्हें भी कुर्सी चाहिए। वैसे तो सिनेमा और राजनीति, दोनों का बड़ा पुराना नाता है। इसकी शुरुआत सबसे पहले 1967 में कांग्रेस ने की थी जिसे बाद में सभी पार्टियों ने हाथों हाथ उठा लिया। दागी नेताओं को टिकट देने और हार से बचने का सीधा रास्ता।
सेलिब्रिटी को जनता उनके काम की वजह से नहीं बल्कि पहचान की वजह से चुनती है। राजनीतिक पार्टियां सेलिब्रिटी को टिकट देती हैं, और ये जीत जाते हैं। जीत के बाद ये अपनी लाइफ में बिजी हो जाते हैं, जिसका फायदा पार्टी के दबंग नेताओं को मिलता है। सेलिब्रिटी ये भूल जाते हैं कि जनता ने इन्हें मनोरंजन के लिए नहीं बल्कि विकास के लिए वोट दिया था। सेलिब्रिटी न तो जनता के बीच जाते हैं और न ही कोई काम करते हैं। इनका काम तो बस मनोरंजन करना है।
काम और मनोरंजन के बीच यह लड़ाई नई नहीं है बल्कि काफी पुरानी है। और जयाप्रदा के समाजवादी पार्टी छोड़ बीजेपी ज्वाइन करने के बाद एक बार फिर जयाप्रदा लोगों की जुबान पर हैं। साल 2018 में जब दीपिका पादुकोण की फिल्म पद्मावत रिलीज़ हुए थी। तब जयाप्रदा ने समाजवादी पार्टी के सहसंस्थापक आजम खान पर बयान देते हुए कहा था कि, 'पद्मावत' का अलाउद्दीन खिलजी उन्हें आजम खान की याद दिलाता है। जिसपर पलटवार करते हुए आजम खान ने कहा था - मैं नाचने गाने वालों के मुँह नहीं लगता। मेरा फोकस छात्रों की पढाई में हैं 'मैं इन दिनों शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहा हूं। अगर मैं ऐसा करुंगा तो राजनीति नहीं कर पाऊंगा। लेकिन अब माजरा बदल चुका है। बीजेपी ने जयाप्रदा को आजम खान के खिलाफ रामपुर के मैदान में उतारने का मन बनाया है। ऐसे में जयाप्रदा को अलाउद्दीन खिलजी और आजम खान को नाचने गाने वालों के मुंह लगना पड़ सकता है।
आजम खान-सपा-जया प्रदा और बीजेपी के तार को समझने के लिए आपको रामपुर की इस सीट के बारे में जानना होगा। साल 2004 में रामपुर की इस सीट जिसमें आजम खान-जाया प्रदा -अमर सिंह सब एक साथ थे। समाजवादी पार्टी से आजम खान जया प्रदा के समर्थक थे और कांग्रेस ने इस सीट पर नूर बानो को जया पर्दा के खिलाफ उतरा। जया ने इस जंग में तो जीत हासिल कर ली लेकिन आजम खान के साथ उनके रिश्ते ख़राब हो गए। एक बार फिर 2009 में अमर सिंह की मदद से जया प्रदा रामपुर के मैदान में उत्तरी और इस बार भी उनका मुकाबला नूर बानो के साथ था। जया प्रदा इस बार भी जीत गई और अमर सिंह उनके भाई बन गए। लेकिन इस बार 2019 में मुकाबला नेता और अभिनेता का है। जया प्रदा और आजम खान एक बार फिर आमने सामने हैं। कौन किसपर भारी पड़ेगा ये तो वक्त ही बताएगा।