
किसान सरकार को अपनी बातें मनवाने के लिए हर संभव प्रयास करते नजर आ रहे है। ताजा मामला सांकेतिक विरोध से जुड़ा हुआ है। जहां किसान भैस (सांकेतिक सरकार) के आगे बीन बजाकर अपनी आवाज पहुंचाने का कार्य कर रहे है।
आपने भैस के आगे बीन बजाने वाली कहावत तो सुनी ही होगी। नोयडा में इस कहावत को जमीन पर उतारने का प्रयास भी किया गया। दरअसल किसानों ने सरकार और आंदोलन को मूर्त रूप देने के लिए भैस के आगे खड़े होकर बीन बजायी। किसानों ने यह आरोप लगाया कि सरकार भैस के समान है जिसे किसानों के आंदोलन का कोई असर नहीं पड़ रहा है दरअसल पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान सरकार के द्वारा पारित किए गए तीन कृषि कानूनों को लेकर विरोध दर्ज कराने के लिए दिल्ली का घेराव कर रहे है।
हालांकि इस मामले में केंद्र सरकार ने किसानों की तकलीफ सुनने के लिए लगातार कई बैठकों का आयोजन किया है जिसमें किसान और सरकार के उच्च स्तर के मंत्री बैठक कर रहे है लेकिन किसान केवल इस बात पर अड़े है कि उन्हें हर हाल में कृषि बिल वापस सरकार को दिलाने है जबकि सरकार का पक्ष यह है कि कृषि बिलो का तात्पर्य किसानों के हित से जुड़ा हुआ है इसलिए बिल वापस तो नहीं हो सकते लेकिन चूंकि किसान देश की नींव कहलाते है तो अगर उन्हें कृषि बिलो में कोई भी दिक्कत है तो हम उस पर चर्चा के साथ-साथ सुधार करने के लिए तत्पर है।
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी आगरा की मेट्रो परियोजना के शिलान्यास के मौके पर भारत की जनता को संबोधित करते हुए कहा कि हम भारत के किसानों की बेहतरी की सोच रखते है अगर किसानों को लगता है कि बिल में कोई ऐसी बात है जो उन्हें शंका की ओर ले जाती है तो हम उसपर विचार करने के लिए सहर्ष तैयार है।
किसान आंदोलन के चलते किसान नेताओं ने 8 दिसम्बर को भारत बंद का आवाहन किया है। किसान आंदोलन के चलते भारत के अनेक राजनीतिक दलों ने भारत बंद को समर्थन भी दिया है लेकिन खुद किसान नेताओं ने इस बारे में जानाकरी दी है कि वह राजनीतिक समर्थन से खुश तो है लेकिन यह मौका राजनीति चमकाने के लिए बिल्कुल नहीं है अगर कोई दल हमें समर्थन देना चाहता है तो वह अपने दल का झंडा घर मे भूलकर आये।
⚡️ उदय बुलेटिन को गूगल न्यूज़, फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें। आपको यह न्यूज़ कैसी लगी कमेंट बॉक्स में अपनी राय दें।