
कानपुर के जूही कंटेनर डिपो (इनलैंड कंटेनर डिपो) भारत के जाने माने कंटेनर डिपो में गिना जाता है यहां पर 24 जनवरी 2005 को संयुक्त अरब अमीरात से लाये गए कंटेनरों में भूलवश कुछ जिंदा और कुछ मिस फ़ायर्ड मिसाइल कानपुर के कंटेनर डिपो पहुँच गयी। जब देखरेख करने वाले कर्मचारियों ने इस मामले की तहकीकात की तो सारा मामला सामने आया। इसके बाद इन मिसाइलों को डिफ्यूज करने की कवायद शुरू हुई। हालांकि इसकी शुरुआत में काफी झोल रहा, उत्तर प्रदेश पुलिस की बम डिस्पोजल स्क्वाड ने मिसाइल्स को देखते ही हाँथ खड़े कर दिए और तब से अब तक ये मिसाइल्स जस की तस रखी हुई थी।
मामले में वर्तमान कानपुर जिलाधिकारी आलोक तिवारी ने मीडिया ब्रीफिंग में बताया कि वो हर संभव कदम उठाएंगे ताकि लंबे वक्त से लंबित मामले को खत्म किया जा सके। जिलाधिकारी के मुताबिक उन्होंने इसके लिए पीएससी से मदद मांगी है और जल्द ही पीएससी इस मामले में अपनी रिपोर्ट जारी करेगी। जिलाधिकारी के मुताबिक लोकल इंटेलिजेंस यूनिट (एलआईयू) ने मामले में सभी आवश्यक जानकारी जुटा ली है और आवश्यकता पड़ने पर भारतीय सेना समेत डीआरडीओ से भी मदद ली जा सकती है।
अगर अनुभव के आधार पर बात की जाए तो उत्तर प्रदेश में स्थापित रिजर्व पुलिस बल की भांति पीएसी (प्रोविंशियल आर्म्ड कांस्टेबुलरी) के पास बम डिफ्यूज करने और दंगा नियंत्रण का अच्छा खासा अनुभव है लेकिन मिसाइल डिफ्यूज करने जैसे काम का कोई अनुभव नही है सनद रहे कि पीएसी बल की स्थापना सेना के अतिरिक्त बल के रूप में स्थापित की गई थी सन 1937 में सेना के रिटायर्ड और नए जवानों को इस बल में शामिल किया गया था जिसका काम सरकार के खिलाफ उभरते हुए विद्रोह को दफन करना था। लेकिन वक्त बीतने के साथ 1948 में एक्ट लाकर इसे उत्तर प्रदेश सरकार के अधीनस्थ किया गया।
जानकारों के मुताबिक पीएसी की रिपोर्ट के बाद अगर पीएसी इस मिसाइल्स को डिफ्यूज करने में हाँथ खड़े करती है तो प्रशासन को इसके लिए सेना और संबंधित संस्थाओं जैसे डीआरडीओ से मदद लेनी पड़ सकती है और अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा तो कानपुर जल्द ही इस सरदर्द से बाहर आ जाएगा।
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