
बॉश ने अपने बयान में यह जानकारी साझा की है कि उसके द्वारा विकसित की गई कोरोना टेस्टिंग मशीन मात्र ढाई घंटे में ही कोरोना के होने अथवा न होने की बेहद एक्यूरेट जानकारी उपलब्ध करा सकती है और यही नहीं इस मशीन में गलत परिणाम की आशंका भी हजारो में एक के बराबर है। ऐसे वक्त में जब भारत सहित अन्य देशों ने चीन की खराब कोरोना टेस्टिंग किट की वजह से रैपिड टेस्टिंग का दूसरा विकल्प खोजने की कोशिश की है उस वक्त में बॉश (Bosch) जैसे बड़े नाम का दावे के साथ आना बहुत बड़ी उम्मीद के जैसा है।
बॉश ने अपने नए उत्पाद/अनुसंधान में जांच की मशीनी प्रक्रिया को दो चरणों मे बांटा है जिसके तहत जांच का एक भाग मूवेबल रहेगा उदाहरण के लिए हम इसे ऐसे समझ सकते है कि कोई एक ऐसी टेस्ट किट है जिसमे कोरोना संदिग्ध का परीक्षण करने योग्य सलाइवा/ ब्लड इत्यादि डाला जाएगा और इस किट को पूर्ण परीक्षण के लिए उसे दूसरे नॉन मूवेबल मशीन विविलेटिक एनालिसिस डिवाइस में डाल दिया जाएगा। जिसमे पहले से प्रोग्राम्ड सॉफ्टवेयर की मदद से कोरोना को बड़ी गहराई से पहचाना जा सकेगा इस प्रकार की टेस्टिंग में सबसे बड़ी मदद यह है किस इसमे गलती होने के आसार न के बराबर हैं।क्योंकि मशीन से गलती होने की गुंजाइश ही नहीं है।
बॉश के सीईओ वॉलकामर डीनर ने कंपनी के द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी में यह बताया कि कोरोना की महामारी के मद्देनजर हमने अन्य सभी उत्पादनों को छोड़कर मास्क बनाने जैसी कोशिश पर बल दिया है। बॉश के दावे के अनुसार मैन्युफैक्चरिंग लाइन के शुरू होने के बाद पांच लाख मास्क रोजाना की दर से बनाये जाएंगे।
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