उत्तर प्रदेश पुलिस का वह नामी हथियार जिसने सन 1945 से साथ निभाया जब उत्तर प्रदेश संयुक्त प्रांत के नाम से जाना जाता था।
पबजी खेलने वालों को कार 98 तो याद ही होगी उससे कुछ मिलती जुलती रायफल जिसने लगभग 161 साल से उत्तर प्रदेश के निवासियों की रक्षा की अब यह सेवा से बाहर कर दी गयी है, 29 नवंबर 2019 का दिन इस रायफल थ्री नॉट थ्री जिसे ।303 कैलिबर बीबी कहा जाता है ने अपनी सेवा का आखिरी दिन निकाला और ससम्मान सेवा से बाहर कर दी गयी।
सन 1945 का साल, मतलब देश की आजादी के पहले जो पुलिस मस्कट 410 राइफलों का उपयोग कर रही थी, उन्हें 1945 में बदल कर लकड़ी से ढकी हुई बैरल वाली 303 बोर की रायफल सौपी गयी, लंबी बैरल और लंबी दूरी के साथ निशाना लगाने में सहायक होने के कारण बेहद पापुलर बंदूक साबित हुई और उत्तर प्रदेश पुलिस में करीब 161 सालो तक सेवा में रही। यह राइफल सन 1857 से पहले यह राइफल अंग्रेंजो का हथियार थी, उसके बाद यह पुलिस को सौंप दी गयी।
बेहद ताकतवर बंदूक जिसकी गोली अगर शरीर को छू भी जाये तो शरीर का नक्शा बदल जायेगा रेंज की बात करे तो इफेक्टिव रेंज भले ही विशेषज्ञों द्वारा 1600 से लेकर 1800 मीटर निर्धारित की गई है लेकिन अगर निशानेबाजों और उपयोगकर्ताओं की बातों पर यकीन करें तो यह बन्दूक 2 किलोमीटर के पार भी सटीक और गजब का निशाना लगाती थी।
जैसा कि इस बंदूक की बैरल लकड़ी से ढकी हुई थी, इस प्रकार से इसकी बैरल जल्दी गर्म नही होती थी और बंदूक पकड़ने वाले को कोई तकलीफ नही होती थी।
भारत मे सर्वप्रथम इन राइफलों को 1857 में प्रयोग में लाया गया भारतीय सेना ने इनको सबसे पहले प्योग में लाया गया और इसमें कुछ बदलाव भी किये गए जिनकी वजह से यह एक सेमी आटोमेटिक रायफल भी बनी। 1914 में प्रथम वर्ल्ड वार और 1962 में भारत चीन युद्ध मे भारत ने इस हथियार का बखूबी प्रयोग किया।
सीधी सी बात है अब जब अपराधी अपराध करने में AK 47 प्रयोग करेंगे तो पुलिस के पुराने तकनीक के हथियार उनके सामने क्या करेंगे। फिर भी कुछ तकनीकी कारण है जिनकी वजह से 303 को सेवा से बाहर किया गया।
303 एक बेहद भारी रायफल साबित हुई, इस हथियार को लेकर ड्रिल करना बेहद सुविधाजनक था लेकर इसको लेकर किसी अपराधी और आतंकी का पीछा करना बेहद मुश्किल।
चूंकि यह एक बोल्ट एक्शन रायफल थी, मतलब एक बार फायर करने के लिए बोल्ट को पुल करके राउंड को बैरल में धकेलना पड़ता था जिसमें अच्छा खासा समय लगता था और एक बार फायर करने के बाद फिर वही प्रक्रिया अपनाई जाती थी।
बहुत पुराना हथियार होने कारण इसके कल पुर्जे बेहद मुश्किल में मिलते थे लगभग हर मौके पर फेल होती फायरिंग इसका मुख्य गवाह थी यही कारण है कि इस पुराने हथियार को सेवा से बाहर किया गया।
उत्तर प्रदेश पुलिस को 1980 के दशक से ही सेना के रिटायर्ड एसएलआर ( SLR ) सेल्फ लोडिंग रायफल मुहैया कराई जाने लगी थी, और उनके साथ में आटोमेटिक कार्बाइन बंदूकें उपलब्ध है अब पुलिस उनके साथ "इंसास" बंदूकें उपलब्ध कराई गई है जो कार्यकुशलता में किसी भी ऑटोमेटिक वेपन से बढ़कर ही है।