
योगी सरकार के इस कदम को सरकार की छवि बरकरार रखने वाला माना जा सकता है। जैसा कि पिछले कुछ वक्त से सरकार और उसके पार्टी की छवि को सोशल मीडिया /मीडिया और राजनीतिक दख़ल से नुकसान पहुचाया जा रहा था। सरकार उसकी भरपाई अब पीड़ित परिवार समेत अन्य आला अधिकारियों समेत सभी के पॉलीग्राफ/नार्को टेस्ट से पूरा करेगी।
उत्तर प्रदेश सरकार जहां एक ओर हाथरस मामले के बाद बैकफुट पर नजर आ रही थी। तो वही लॉ एंड ऑर्डर बरकरार रखने के बहाने से आला अधिकारियों ने नियमो को ताक पर रखकर जो कारनामे किये उनका कोई जवाब न तो सरकार के पास है और ना ही अधिकारियों के पास बचा था।
शायद यहीं कारण है कि सरकार ने अपनी मजबूती दिखाने के लिए अब मेडिकल अपराध विज्ञान में काफी हद तक कारगर माने जाने वाले पॉलीग्राफ टेस्ट का सहारा लिया है।
सरकार ने बताया है कि इस मामले में जुड़े हुए सभी आरोपियों, पीड़ित परिवार और अधिकारियों का पॉलीग्राफ टेस्ट कराया जाएगा ताकि मामले की असलियत सांमने आ सके।
इस मामले से जुड़े एसपी, डीएसपी और अन्य वरिष्ठ कर्मचारियों को सरकार द्वारा सस्पेंड किया गया है।
चूंकि जब परिवार ने पुलिस में मनीषा के साथ हुई घटना की रिपोर्ट लिखाई थी। और उस शिकायती आवेदन में ऐसा कोई साक्ष्य नज़र नहीं आता कि पीड़िता के साथ कोई यौन दुर्व्यवहार की घटना को लिखाया गया हो।
हालांकि बाद में परिजनों की मांग पर पुलिस ने अपराध की श्रेणी में बदलाव करके धाराओं में बढ़ोतरी की, लेकिन बाद में पुलिस ने पोस्टमार्टम में बलात्कार की घटना को गलत बताया और बलात्कार समेत हाँथ पैर तोड़े जाने की बात को सरासर गलत बताया।
इस मामले पर सरकार द्वारा गठित एसआईटी (SIT) की टीम के द्वारा जांच कराई जा रही है लेकिन उसी दौरान पीड़ित परिवार के परिजनों के मोबाइल फोन इत्यादि पुलिस द्वारा जब्त कर लिए गए और किसी भी बाहरी व्यक्ति से मिलने पर बंदिश लगा दी गई। परिजनों ने आरोप लगाया की उन्हें लगातार बंधक बना कर रखा जा रहा है और मीडिया में कोई भी बात नही रखने दी जा रही है।
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