
अब इसे जनता के पैसों का दुरूपयोग बताया जाए या फिर सांसद जी को जनता के पैसों पर खुद का नाम प्रचारित करने का अनोखा तरीका, बात कुछ भी हो हर तरीके से नुकसान जानता का ही हो रहा है। लोग अपनी बचत से टैक्स के रुपये कटाकर सोचते है कि यह पैसा देश के विकास में प्रयोग हो रहा है, लेकिन असलियत इससे कोसो दूर नजर आती है।
इसे भारतीय संविधान की विडंबना कहें तो कोई बड़ी बात नहीं होगी, दरअसल भारतीय राजनीति में नाम लिखाकर दान देना कोई नया नही है। हर गली मोहल्ले में नगर पालिका के वार्ड मेम्बर से लेकर संसद में बैठने वाले नेता किसी कार्य के निर्माण करने से पहले उद्घाटन करने के लिए उतावले नजर आते है और हर काम के बाद शिलापट्ट भी लगाया जाता है ताकि नेता जी के काम को सदियों तक याद किया जाए।
लेकिन अगर नेता जी द्वारा किया गया काम देश के किसी भी काम न आये तो सवाल उठना लाजिमी है, मामला देश की राजधानी दिल्ली से जुड़ा हुआ है जहां के पूर्वी दिल्ली नगर निगम में करोड़ों की कीमत की ई-कार्ट ( कूड़ा ढोने वाले इलेक्ट्रिक वाहन ) आजकल अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे है। दरअसल इन अति उन्नतशील वाहनों को सांसद निधि से खरीदे जाने के बाद आज तक प्रयोग ही नही किया गया। ये वाहन डेढ़ साल से ज्यादा वक्त के बाद अपनी जगह से टस से मस नही किये गए। नतीजन ये नए वाहन इतने कम वक्त में भी कबाड़ में बेचे जाने की स्थिति में पहुँच चुके है।
दरअसल करीब डेढ़ साल पहले दिल्ली से भाजपा के सांसद मनोज तिवारी ने पूर्वी नगर निगम दिल्ली को करीब दो करोड़ से ज्यादा कीमत के ई-कार्ट अपनी सांसद निधि से उपलब्ध कराए थे, ताकि पूर्वी नगर निगम द्वारा अपने कार्य क्षेत्र में इनका उपयोग कूड़ा करकट उठाने के लिए प्रयोग किया जाएगा। लेकिन असलियत में ऐसा हुआ नही, हर ई-कार्ट पर मनोज तिवारी द्वारा इन वाहनों के दिलाये जाने का उल्लेख भी किया गया लेकिन आजतक न तो इनमें से किसी वाहन को उपयोग में लाया गया और न ही दिल्ली की जनता को इनसे कोई लाभ मिला। बल्कि दो करोड़ की कीमत को मिट्टी में मिलाया गया, लंबे वक्त से खड़े इन वाहनों में लगी बैटरी बेकार हो चुकी है, टायर जमीन में खड़े-खड़े बेहद बुरी स्थिति में पहुँच चुके है, बॉडी में जंग लगने की शुरुआत हो चुकी है। कुल मिलाकर दो करोड़ से ज्यादा की रकम गयी पानी में।
अगर सूत्रों की माने तो इन वाहनों को मिट्टी में मिलाने का पूरा श्रेय पूर्वी दिल्ली नगर निगम को भी जाता है, दरअसल नगर निगम में भी पैसा कमाने की लंबी होड़ लगी होती है फिर कमाई का जरिया पेट्रोल डीजल से ही क्यों न हो, जब डीजल पेट्रोल वाले वाहन खर्चे के हिसाब के कमाई का पेड़ है तो उनकी जगह बचत करने वाले इलेक्ट्रिक वाहनों का नगर निगम में क्या काम।
जो भी हो हर हाल में नुकसान तो आम जनता का ही होना है जिसकी वजह से नेताओं की निधि में पैसा जाता है
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