
सरकार के तीन कृषि बिल में तीन कानूनों को लेकर जिस तरह से किसानों द्वारा दिल्ली की घेराबंदी करने की कोशिश की जा रही है, सरकार लगातार किसानों से बातचीत कर भी रही है लेकिन असल में इस बातचीत का कोई हल निकलने वाला नही है। दरअसल किसानों को न तो कानून की कोई जानकारी है ना ही उन्हें उन प्रावधानों के बारे में कोई जानकारी है जो किसानों के विरोध में हो।
अगर किसानों और सरकार के बीच हुई बेनतीजा बातचीत का मूल्यांकन किया जाए तो किसान इस मामले में अपनी मंजिल से बेहद दूर खड़े नजर आते हैं। दरअसल जिस तरह से फिल्मी दुनिया और विपक्षी दलों द्वारा इस आंदोलन का इतना बड़ा हौआ बनाकर खड़ा किया जा रहा है उसमें एक बहुत बड़ा झोल नजर आता है, दरअसल सरकार का यह पक्ष है कि आप हमें कानूनों में ऐसे प्रावधान बताइये जो किसानों के खिलाफ हो!
लेकिन बातचीत के दौरान कई बार ऐसी स्थिति पैदा हुई कि किसानों के पास ऐसे कोई बिंदु उपलब्ध ही नही थे जिनको सरकार के सामने रखकर अपनी बात कही जाए।
सरकार ने बीते दिनों में किसानों के साथ हुई मीटिंग में किसानों से सवाल पूंछा कि क्या वह ऐसे कोई तथ्य बतला सकते है जो किसानों के हितों का हनन करते हो या उक्त कानूनों से किसानों को कोई हानि पहुँच रही हो। इस पर किसानों द्वारा कोई जानकारी उपलब्ध नही कराई जा सकी। सरकार के सूत्रों द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार सरकार ने किसानों से साफ-साफ शब्दों में कहा है कि वह अगली बार की मीटिंग में उन तथ्यों को लेकर आये जो किसानों के विरुद्ध है ताकि उनपर सरकार विचार कर सके।
दरअसल सरकार के द्वारा मीटिंग में यह सवाल भी उठाया गया कि अगर आपके पास कोई ऐसी वजह नही है जिससे किसानों का नुकसान उक्त कानूनों द्वारा होता है तो फिर यह घेराव किस तरह जायज माना जा सकता है। हालांकि इस बारे में किसानों द्वारा कानून के जानकारों के पास जाकर विमर्श करने के संकेत मिले है शायद अगली मीटिंग तक किसानों के पास ऐसे मुद्दे होंगे जिन्हें सरकार के सामने रखा जा सकेगा।
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